सतत विकास लक्ष्य एवं भारत

Authors

  • Dr. Akhtar Husain Assistant Professor, Department of Political Science, Govt. Girls Degree College, Ahiraula, Azamgarh, Uttar Pradesh, India
  • Dr. Maya Bharti Assistant Professor, Department of Political Science, Govt. Raza P. G. College, Rampur, Uttar Pradesh, India

Keywords:

यू.एन.ओ, भौतिकतावादी, नवीकरणीय संसाधन सहत्राब्दी विकास, सतत् विकास, समावेशी विकास, जैंडर समानता

Abstract

संसाधनो का कुशलता पूर्वक उपयोग जिससे कि वर्तमान पीढ़ियो के साथ-साथ भावी मानव पीढ़ियो को भी प्राकृृृृृृृतिक संसाधन पर्याप्त रूप से उपलब्ध हो सके, अर्थात अपने आवश्यकताओ से समझौता किये बिना आने वाली पीढी की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विकास ही सतत् विकास हैं। सतत् विकास के केन्द्र में समाजिक न्याय एवं समावेशन तथा पर्यावरण संरक्षण है। इस विकास के माध्यम से आर्थिक विकास, समाजिक कल्याण तथा पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया है। वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सहत्राब्दी विकास लक्ष्यों अपनाया गया तथा 2015 तक इन लक्ष्यो को हासिल करने की इच्छा व्यक्त गई थी। इसका उददेश्य मानवता की बुनियादी जरूरतों- भोजन, वस्त्र, आवास, रोजगार, की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना तथा गरीबों के जरूरतों पर ध्यान देना । इसमें मुख्यत; प्राथमिक शिक्षा, जैंडर समानता, मातृत्व में सुधार, बाल मृत्यु दर में सुधार, तथा पर्यावरणीय विकास आदि बिन्दु शामिल है। चंूकि वर्ष 2015 तक की अवधि समाप्त हो चुका था और अभी भी वैश्विक समस्याएं विद्यमान थी। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2016 से 2030 तक के लिए 17 नए बिंदुओं के अंतर्गत संधारणीय विकास लक्ष्यो को स्वीकार किया गया हैं,। जिसका उददेश्य सतत् तथा समावेशी विकास को प्राप्त करना है। भारत तथा वैश्विक स्तर पर सतत् विकास के लक्ष्यो की प्राप्ती के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओ एवं पर्यावरणीय नीतियो तथा अधिनियमो के माध्यम से प्रयास किया जा रहा है। बावजूद इसके इन प्रयासो में अधिक तीव्रता तथा गंभीरता की जरूरत है।

References

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Published

2024-03-30

How to Cite

[1]
A. . Husain and M. . Bharti, “सतत विकास लक्ष्य एवं भारत”, J. Soc. Rev. Dev., vol. 3, no. Special 1, pp. 121–123, Mar. 2024.