वैश्वीकरण के युग में हिंदी की भूमिका

Authors

  • प्रोफेसर सपना भारती संस्कृत विभाग, दमयंती राज आनंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिसौली, बदायूँ, उत्तर प्रदेश, भारत

Keywords:

बहुआयामी अवधारणा, सांस्कृतिक पहचान, चुनौतियां, जनोन्मुखी, विश्व भाषा

Abstract

वैश्वीकरण का अर्थ है विश्व्यापी पारस्परिक जुडाव जो विचार पूंजी वस्तु और लोगों के प्रवाह से उत्पन्न होता है।
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। इसके आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सांस्कृतिक रूप से रहन-सहन, वेश-भूषा, भाषा इत्यादि पर प्रभाव पद रहा है।
अंग्रेजी वर्चस्व के युग में जब दुनिया की कई भाषाएँ लुप्त हो रही है ऐसे में हिंदी ने अपने स्वरुप में परिवर्तन लाकर स्वयं को जीवंत किया है। आज हम हिंदी के कई रूप से अवगत हो रहे है जैसेदृविज्ञापन की हिंदी, खेल-कूद की हिंदी, बोलचाल की हिंदी, फिल्मों की हिंदी, कार्यालयी हिंदी, संचार माध्यम की हिंदी, बाज़ार की हिंदी, मीडिया की हिंदी, तकनीक की हिंदी इत्यादि। अपने परम्परागत रूप से इतर हिंदी इन नए रूपों में खूब पुष्पित दृ पल्लवित हो रही है। इसके अतिरिक्त हिंदी की विदेशी शैलियाँ भी विकसित हो रही हैं।
भारत की सांस्कृतिक पहचान हिंदी भाषा नए दौर में नए स्वरुप में जीवन हुई है। बाज़ार की भाषा बनी हिंदी भारत के कोने.कोने से लेकर विश्व के कोने-कोने तक प्रसारित हो रही है।
मीडिया, तकनीक, इन्टरनेट इत्यादि हर क्षेत्र में हिंदी धूम मचा रही है, लेकिन वैश्वीकरण ने इसके साथ-साथ हिंदी के सामने कई चुनौतियां भी कड़ी की है। वैश्वीकरण की चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक है कि हिंदी को जनोन्मुखी, रोजगारपरक, सरल-सुगम बनाया जाए ताकि यह विश्व मंच पर ताकतवर भाषा के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके।

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Published

2024-03-30

How to Cite

[1]
भारती स. ., “वैश्वीकरण के युग में हिंदी की भूमिका”, J. Soc. Rev. Dev., vol. 3, no. Special 1, pp. 155–157, Mar. 2024.