सतत् विकास लक्ष्यों में भारत की भूमिका

Authors

  • डॉ0 सुनीति लता असिस्टेंट प्रोफेसर, बी. एड. विभाग, गोकुलदास हिंदू गर्ल्स कॉलेज, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

Keywords:

समाज की आवश्यकता, समाज विकास के लक्ष्य, समाज में निहित कार्यों की समीक्षा

Abstract

सतत विकास से हमारा अभिप्राय ऐसे विकास से है, जो हमारी भावी पीढ़ियों की अपनी ज़रूरतें पूरी करने की योग्यता को प्रभावित किये बिना वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे। सतत विकास लक्ष्यों का उद्देश्य सबके लिये समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण करना और विकास के तीनों पहलुओं, अर्थात सामाजिक समावेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है। सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य के बाद (जो 2000 से 2015 तक के लिये निर्धारित किये गए थे) विकसित इन नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँ कम और आशाएँ अधिक हों। सभी के लिये स्वच्छता और पानी के सतत् प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना। सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना। सभी के लिये निरंतर समावेशी और सतत् आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोज़गार तथा बेहतर कार्य को बढ़ावा देना। लचीले बुनियादी ढाँचे, समावेशी और सतत् औद्योगीकरण को बढ़ावा।

References

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Published

2024-03-30

How to Cite

[1]
लता स. ., “सतत् विकास लक्ष्यों में भारत की भूमिका”, J. Soc. Rev. Dev., vol. 3, no. Special 1, pp. 71–73, Mar. 2024.