सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण में परिवर्तन, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उचित या अनुचित - एक विश्लेषण

Authors

  • Dr. Madan Mohan Varshney Assistant Professor & HOD, Department of Commerce, D. R. A. Govt. P. G. College, M. J. P. Rohilkhand University, Bareilly, Uttar Pradesh, India
  • Vikas Baboo Research Scholar, D. R. A. Govt. P. G. College, M. J. P. Rohilkhand University, Bareilly, Uttar Pradesh, India

Keywords:

सार्वजनिक क्षेत्र, निजीकरण, विनिवेश नीति, आर्थिक कल्याण एवं विकास, दक्षता एवं कुशलता, मिश्रित अर्थव्यवस्था

Abstract

वर्तमान समय में प्रत्येक देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक विकास है। भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण तथा उनके कारणों एवं प्रभावों की सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों की समीक्षा करता हैं। हो गया भारत एक विकासशील देश है,जहॉं मि़िश्रत अर्थव्यवस्था पायी जाती हैं। स्वतन्त्रता से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्रों की भूमिका कम थी। 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भ में मात्र पॉंच सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम थे जिनका कुल निवेश 29 करोड रुपये था जोकि भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्रों के द्वारा सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लक्ष्यों को प्राप्त करना देश के तेज आर्थिक विकास और औद्यौगिकीकरण के लिए जरुरी आधारभूत ढांचा पैदा करनें,रोजगार के अवसरों एवं आर्थिक कल्याण और संतुलित क्षेत्रीय विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। परन्तु सार्वजनिक क्षेत्रों का स्वामित्व निजी क्षेत्रों को हस्तान्तिरित करने के पीछे सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों का लगातार घाटे में जाना,क्षमता के उपयोग का स्तरहीन होना कर्मचारियों की भरमार, बढता हुआ राजकोषीय घाटा, बढता भ्रष्टाचार ,नौकरशाही भाई-भतीजावाद फिजूलखर्ची को रोकने एवं नियन्त्रण करने के लिए आवश्यक था।निजीकरण की उचित प्रक्रिया देश की आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है जहॉं उसके फायदे है वहीं गंभीर नुकसान भी है यहॉं तक कहा गया है कि निजी कम्पनियां बडे व्यापारिक सौदोें को निपटाने के लिए सरकारी कार्यालयों को मोटी रिश्वत देती हैं।

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Published

2024-03-30

How to Cite

[1]
M. M. Varshney and V. Baboo, “सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण में परिवर्तन, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उचित या अनुचित - एक विश्लेषण”, J. Soc. Rev. Dev., vol. 3, no. Special 1, pp. 60–64, Mar. 2024.